जीवन मे काम आने वाले संत कबीर दास जी के प्रसिद्ध दोहे | Sant Kabir Das Ke Dohe in Hindi

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               जीवन मे काम आने वाले संत कबीर दास जी के प्रसिद्ध दोहे

Sant Kabir Das Ke Dohe in Hindi | नमस्कार दोस्तों PositiveBate.com पर आप सभी का स्वागत है। कबीरदास जी का नाम तो आप सभी ने सुना ही होगा। कबीर दास जी के जीवन से हम सभी को धर्म पर चलने की प्रेरणा(Inspiration) मिलती है। इन्होंने अपने सभी संदेश को दोहों के माध्यम से प्रस्तुत किया है। जिनको पढ़कर कोई भी अपने ज्ञान के स्तर को बढ़ा सकता है।

Sant Kabir Das Ke Dohe ज्ञान से भरपूर है। जिसको यदि कोई गहराई से समझने का प्रयास करता है तो वह व्यक्ति अपने अंदर महान गुणों को समाहित कर सकता है।

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संत कबीर दास जी के प्रसिद्ध दोहे | Famous Couplets of Sant Kabir Das

Kabir Das Ji Ki Vani | दोस्तों यदि आप अपने ज्ञान के स्तर को बढ़ाना चाहते हैं तो नीचे बताए गए Kabir Das Ji Ke Dohe को ध्यानपूर्वक पढ़ें और इन सभी Doho को समझने की कोशिश करें।

 1. दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करै न कोय।

     जो सुख में सुमिरन करे दुःख काहे को होय ॥

अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि दुःख के समय सभी भगवान् को याद करते हैं पर सुख में कोई नहीं करता। यदि सुख में भी भगवान् को याद किया जाए तो दुःख हो ही क्यों !

2. गुरु गोविंद दोउ खड़े काको लागूं पाय,

   बलिहारी गुरु आपने, गोविंन्द दियो बताय ।

अर्थ –  कबीर दास जी कहते हैं कि अगर हमारे सामने ईश्वर और गुरु एक साथ खड़े हैं तो हमें किसके चरण स्पर्श करना चाहिए। गुरु ने अपने ज्ञान के द्वारा ही हमें ईश्वर से मिलने का रास्ता बताया है इसलिए गुरु की महिमा ईश्वर से ऊपर है। इसलिए हमें पहले गुरु के चरण स्पर्श करना चाहिए।

3. जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,

    मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।

अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि सज्जन पुरुष की जाति नहीं पुछनी चाहिए। बस उसके ज्ञान को समझना चाहिए। जैसे कि तलवार का मूल्य होता है न कि उसके म्यान का।

4. धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,

    माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।

अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं, धैर्य का फल मीठा होता है। इसलिए मन में धीरज रखने से सब कुछ होता है। अगर कोई माली किसी पेड़ को सौ घड़े पानी से सींचने लगे, तब भी फल तो ऋतु आने पर ही लगेगा।

5. जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ,

    मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।

अर्थ- जो प्रयत्न करते हैं, वे कुछ न कुछ वैसे ही पा ही लेते हैं जैसे कोई मेहनत करने वाला गोताखोर गहरे पानी में जाता है और कुछ ले कर आता है। लेकिन कुछ बेचारे लोग ऐसे भी होते हैं जो डूबने के भय से  किनारे पर ही बैठे रह जाते हैं और कुछ नहीं पाते।

6. साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय ।

   मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय ॥

अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि परमात्मा तुम मुझे इतना दो कि जिसमे बस मेरा गुज़ारा चल जाये , मैं खुद भी अपना पेट पाल सकूँ और आने वाले मेहमानो को भी भोजन करा सकूँ।

संत कबीर दास ने कहाँ है कि ख़ुशी का रास्ता गुरु के द्वार से ही निकलता है।

7. अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप,

   अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।

अर्थ – न तो अधिक बोलना अच्छा है, न ही जरूरत से ज्यादा चुप रहना ही ठीक है। जैसे बहुत अधिक वर्षा भी अच्छी नहीं और बहुत अधिक धूप भी अच्छी नहीं है।

8. पतिबरता मैली भली गले कांच की पोत ।

    सब सखियाँ में यों दिपै ज्यों सूरज की जोत ॥

अर्थ – पतिव्रता स्त्री यदि तन से मैली भी हो भी अच्छी है। चाहे उसके गले में केवल कांच के मोती की माला ही क्यों न हो। फिर भी वह अपनी सब सखियों के बीच सूर्य के तेज के समान चमकती है।

9. बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,

   जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।

अर्थ – जब मैं इस संसार में बुराई खोजने चला तो मुझे कोई बुरा न मिला। जब मैंने अपने मन में झाँक कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा कोई नहीं है।

10. पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,

      ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।

अर्थ – बड़ी बड़ी पुस्तकें पढ़ कर संसार में कितने ही लोग मृत्यु के द्वार पहुँच गए, पर सभी विद्वान न हो सके। कबीर मानते हैं कि यदि कोई प्रेम या प्यार के केवल ढाई अक्षर ही अच्छी तरह पढ़ ले, अर्थात प्यार का वास्तविक रूप पहचान ले तो वही सच्चा ज्ञानी होगा।

अधूरा ज्ञान खतरनाक होता है |

11. साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय,

     सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।

अर्थ – इस संसार में ऐसे सज्जनों की जरूरत है जैसे अनाज साफ़ करने वाला सूप होता है। जो सार्थक को बचा लेंगे और निरर्थक को उड़ा देंगे।

Best Sant Kabir Das Ke Dohe in Hindi | संत कबीर दास जी के प्रसिद्ध दोहे

12. तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय,

      कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय।

अर्थ – कबीर कहते हैं कि एक छोटे से तिनके की भी कभी निंदा न करो जो तुम्हारे पांवों के नीचे दब जाता है। यदि कभी वह तिनका उड़कर आँख में आ गिरे तो कितनी गहरी पीड़ा होती है !

13. संत ना छाडै संतई, जो कोटिक मिले असंत

      चन्दन भुवंगा बैठिया, तऊ सीतलता न तजंत।

अर्थ – सज्जन को चाहे करोड़ों दुष्ट पुरुष मिलें फिर भी वह अपने भले स्वभाव को नहीं छोड़ता। चन्दन के पेड़ से सांप लिपटे रहते हैं, पर वह अपनी शीतलता नहीं छोड़ता।

14. जो उग्या सो अन्तबै, फूल्या सो कुमलाहीं।

      जो चिनिया सो ढही पड़े, जो आया सो जाहीं।

अर्थ – कबीर दास जी कहते है कि इस संसार का नियम यही है कि जो उदय हुआ है,वह अस्त होगा। जो विकसित हुआ है वह मुरझा जाएगा। जो चिना गया है वह गिर पड़ेगा और जो आया है वह जाएगा।

15. कबीर तन पंछी भया, जहां मन तहां उडी जाइ।

      जो जैसी संगती कर, सो तैसा ही फल पाइ।

अर्थ – कबीर कहते हैं कि संसारी व्यक्ति का शरीर पक्षी बन गया है और जहां उसका मन होता है, शरीर उड़कर वहीं पहुँच जाता है। सच है कि जो जैसा साथ करता है, वह वैसा ही फल पाता है।

16. तन को जोगी सब करें, मन को बिरला कोई।

      सब सिद्धि सहजे पाइए, जे मन जोगी होइ।

अर्थ – शरीर में भगवे वस्त्र धारण करना सरल है, पर मन को योगी बनाना बिरले ही व्यक्तियों का काम है य़दि मन योगी हो जाए तो सारी सिद्धियाँ सहज ही प्राप्त हो जाती हैं।

17. कबीर सो धन संचे, जो आगे को होय।

      सीस चढ़ाए पोटली, ले जात न देख्यो कोय।

अर्थ –  कहते हैं कि उस धन को इकट्ठा करो जो भविष्य में काम आए। सर पर धन की गठरी बाँध कर ले जाते तो किसी को नहीं देखा।

18. माया मुई न मन मुआ, मरी मरी गया सरीर।

      आसा त्रिसना न मुई, यों कही गए कबीर।

अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि संसार में रहते हुए न माया मरती है न मन। शरीर न जाने कितनी बार मर चुका पर मनुष्य की आशा और तृष्णा कभी नहीं मरती है।

Famous Couplets of Sant Kabir Das

19. रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय ।

     हीरा जन्म अमोल सा, कोड़ी बदले जाय ॥

अर्थ – रात नींद में नष्ट कर दी, सोते रहे – दिन में भोजन से फुर्सत नहीं मिली, यह मनुष्य जन्म हीरे के सामान बहुमूल्य था जिसे तुमने व्यर्थ कर दिया – कुछ सार्थक किया नहीं तो जीवन का क्या मूल्य बचा ? एक कौड़ी

20. बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।

     पंछी को छाया नहीं फल लागे अति दूर ॥

अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं, खजूर के पेड़ के समान बड़ा होने का क्या लाभ, जो ना ठीक से किसी को छाँव दे पाता है और न ही उसके फल सुलभ होते हैं। इसलिए अपने जीवन काल मे ऐसा बनें जिससे आप किसी की सहायता कर सकें।

21. हरिया जांणे रूखड़ा, उस पाणी का नेह।

      सूका काठ न जानई, कबहूँ बरसा मेंह॥

अर्थ – पानी के स्नेह को हरा वृक्ष ही जानता है.सूखा काठ – लकड़ी क्या जाने कि कब पानी बरसा? अर्थात सहृदय ही प्रेम भाव को समझता है. निर्मम मन इस भावना को क्या जाने ?

22. झिरमिर- झिरमिर बरसिया, पाहन ऊपर मेंह।

     माटी गलि सैजल भई, पांहन बोही तेह॥

अर्थ – बादल पत्थर के ऊपर झिरमिर करके बरसने लगे। इससे मिट्टी तो भीग कर सजल हो गई किन्तु पत्थर वैसा का वैसा बना रहा।

23. कहत सुनत सब दिन गए, उरझी न सुरझ्या मन।

      कहि कबीर चेत्या नहीं, अजहूँ सो पहला दिन॥

अर्थ – कहते सुनते सब दिन बीत गए, पर यह मन उलझ कर न सुलझ पाया ! कबीर कहते हैं कि यह मन अभी भी होश में नहीं आता। आज भी इसकी अवस्था पहले दिन के ही समान है।

Kabir Das ki Amritwani

24.लुट सके तो लुट ले, हरी नाम की लुट ।

अंत समय पछतायेगा, जब प्राण जायेगे छुट ।

अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि ये संसार ज्ञान से भरा पड़ा है, हर जगह राम बसे हैं। अभी समय है राम की भक्ति करो, नहीं तो जब अंत समय आएगा तो पछताना पड़ेगा।

25. तेरा संगी कोई नहीं सब स्वारथ बंधी लोइ ।

      मन परतीति न उपजै, जीव बेसास न होइ ।

अर्थ –  तेरा साथी कोई भी नहीं है। सब मनुष्य स्वार्थ में बंधे हुए हैं, जब तक इस बात की प्रतीति – भरोसा – मन में उत्पन्न नहीं होता तब तक आत्मा के प्रति विशवास जाग्रत नहीं होता। भावार्थात वास्तविकता का ज्ञान न होने से मनुष्य संसार में रमा रहता है जब संसार के सच को जान लेता है।

26. मैं मैं मेरी जिनी करै, मेरी सूल बिनास ।

     मेरी पग का पैषणा मेरी  गल की पास ।

अर्थ –  ममता और अहंकार में मत फंसो और बंधो,  यह मेरा है कि रट मत लगाओ। ये विनाश के मूल हैं – जड़ हैं – कारण हैं – ममता पैरों की बेडी है और गले की फांसी है।

27. कबीर यह तनु जात है सकै तो लेहू बहोरि ।

      नंगे हाथूं ते गए जिनके लाख करोडि

अर्थ –  यह शरीर नष्ट होने वाला है हो सके तो अब भी संभल जाओ – इसे संभाल लो !  जिनके पास लाखों करोड़ों की संपत्ति थी वे भी यहाँ से खाली हाथ ही गए हैं – इसलिए जीते जी धन संपत्ति जोड़ने में ही न लगे रहो – कुछ सार्थक भी कर लो ! जीवन को कोई दिशा दे लो – कुछ भले काम कर लो !

28. हू तन तो सब बन भया करम भए कुहांडि ।

     आप आप कूँ काटि है, कहै कबीर बिचारि।

अर्थ – यह शरीर तो सब जंगल के समान है – हमारे कर्म ही कुल्हाड़ी के समान हैं। इस प्रकार हम खुद अपने आपको काट रहे हैं – यह बात कबीर सोच विचार कर कहते हैं।

29. मैं अपराधी जन्म का, नख-सिख भरा विकार ।

     तुम दाता दुख भंजना, मेरा करो सम्हार

अर्थ – हे प्रभु।मैं तो इस जन्म का अपराधी हूँ मेरे शरीर में ऊपर से लेकर निचे तक विकार भरा है, आप सभी के दाता हैं आपही मेरा उद्धार करो।

30. जहाँ आपा तहाँ आपदा, जहाँ संशय तहाँ रोग ।

     कह कबीर यह क्यों मिटे, चारों धीरज रोग

अर्थ – कबीर कहते हैं की जैसे ही मनुष्य में घमंड हो जाता है उस पर आपत्तियाँ आने लगती हैं और जहाँ संदेह होता है वहाँ वहाँ निराशा और चिंता होने लगती है। कबीरदास जी कहते हैं की यह चारों रोग धीरज से हीं मिट सकते हैं ।

31. आया था किस काम को, तू सोया चादर तान ।

     सूरत सम्हाल ऐ गाफिल, अपना आप पहचान

अर्थ – कबीर कहते हैं की ऐ गाफिल ! तू चादर तान कर सो रहा है, अपने होश ठीक कर और अपने आप को पहचान, तू किस काम के लिए आया था और तू कौन है? स्वयं को पहचान और सही कर्म कर।

32. मूँड़ मुड़ाये हरि मिले, सब कोई लेय मुड़ाय ।

     बार-बार के मूड़ते, भेड़ न बैकुण्ठ जाय ।

अर्थ – कबीर कहते हैं की अगर सर के बाल छिलाने से हरी मिल जाते तो सब लोग अपने सर के बाल छिला लिए होते, जैसे भेड़ के शरीर के बाल को बार बार छिला जाता है फिर भी वह बैकुंठ नहीं पहुँचता।

33. माया तो ठगनी बनी, ठगत फिरे सब देश ।

     जा ठग ने ठगनी ठगो, ता ठग को आदेश ।

आज इस लेख में हमने जाना ” जीवन मे काम आने वाले संत कबीर दास जी के प्रसिद्ध दोहे | Sant Kabir Das Ke Dohe in Hindi ” जो हमको जीवन में आगे बढ़ने का रास्ता दिखाते है तो आप भी इन दोहो की मदद से जीवन मे कामयाबी को हासिल कर सकते हो।

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