Contents show
राबिया एक धार्मिक
Rabiya ek dharmik: एक बार राबिया (Rabia) एक धार्मिक पुस्तक, ग्रंथ पढ़ रही थीं। पुस्तक में एक जगह लिखा था, शैतान से घृणा करो, प्रेम नहीं। राबिया ने वह लाइन काट दी। कुछ दिन बाद उससे मिलने एक संत आए।
वह उस धार्मिक पुस्तक को पढ़ने ग्रंथ लगे।
उन्होंने कटा हुआ वाक्य देख कर सोचा कि किसी नासमझ ने उसे काटा होगा। उसे धर्म का ज्ञान नहीं होगा।
उन्होंने राबिया को वह पंक्ति दिखा कर कहा, जिसने यह पंक्ति काटी है वह जरूर नास्तिक होगा।
शैतान से घृणा मत-Rabiya ek dharmik
राबिया ने कहा, इसे तो मैंने ही काटा है। संत ने अधीरता से कहा, तुम इतनी महान संत होकर यह कैसे कह सकती
हो कि शैतान से घृणा मत करो। शैतान तो इंसान का दुश्मन होता है।
इस पर राबिया ने कहा, पहले मैं भी यही सोचती थी कि शैतान से घृणा करो।
लेकिन उस समय मैं प्रेम को समझ नहीं सकी थी।
मेरी नजर में घृणा लायक कोई नहीं है।
राबिया एक धार्मिक-Rabiya ek dharmik
संत ने पूछा, क्या तुम यह कहना चाहती हो कि जो हमसे घृणा करते हैं, हम उनसे प्रेम करें।
राबिया बोली, प्रेम किया नहीं जाता।
प्रेम तो मन के भीतर अपने आप अंकुरित होने वाली भावना है।
प्रेम के अंकुरित होने पर मन के अंदर घृणा के लिए कोई जगह नहीं होगी।
हम सबकी एक ही तकलीफ है। हम सोचते हैं कि हमसे कोई प्रेम नहीं करता।
यह कोई नहीं सोचता कि प्रेम दूसरों से लेने की चीज नहीं है, यह देने की चीज है।
हम प्रेम देते हैं। यदि शैतान से प्रेम करोगे तो वह भी प्रेम का हाथ बढ़ाएगा।
राबिया एक धार्मिक-Rabiya ek dharmik
संत ने कहा, अब समझा, राबिया! तुमने उस पंक्ति को काट कर ठीक ही किया है।
इसलिए हम प्रेम नहीं करते, प्रेम करने का नाटक करते हैं।
यही कारण है कि संसार में नफरत और द्वेष फैलता नजर आता है।
शैतान से प्रेम (अहंकार सदा लेकर प्रसन्न होता है, प्रेम सदा देकर संतुष्ट होता है)।
Warms
पॉंजिटव बातें
आपकी जिदंगी को बदलने वाली प्रेरणादारयक कहानियॉं :