खुशी का रास्ता गुरू के द्धारा । hindi adhyatmik kahaniya
Hindi adhyatmik kahaniya:प्रचीन समय में जापान में एक बहुत पहुंचे हुए संन्यासी (guru) हये थें। उस संत (guru) की एक ही शिक्षा का एक ही सार था कि,जाग जाओं नींद का त्याग कर दो । उस संत (guru) की खबर चीन के सम्राट (raja) को मिली। सम्राट (raja) अभी नौजवान और जवान था, अभी हाल ही में उसको राज्यभिषेक हुआ था, उसने उस पहचे हुये संत (guru) को अपने राजदरबार में तलब कर लिये,
सम्राट (raja) के आदेश के बाद उसके सैनिक उन सन्यासी (guru) को राजदरबार में सम्मान ले आये, सम्राट (raja) ने उन संत (guru) से प्रार्थना की कि मैने आपके बारे में बहुत कुछ सुना है, और में भी जागना चाहता हूं, इस काम में तकरीबन कितना समय लग जायेगा, क्या आप मेरा निवेदन स्वीकर करेंगें ? guru ki gyan ki baatein best.
इस पर उस संत (guru) ने कहा कि महाराज मे आपको सीखा दूगा लेकिन ,उस विधा को में आपको यहा नही सिखा सकता उसके लिये आपको मेरी जगंल में बनी कुटिया में आना होना तब ही आप उसे सीख पायेगे। और उसको सीखने में कितना समय लग जाएगा यह कोई निश्चित नही है।
यह सीखने वाले इंसान की जागरूकता (सजगता) के अनुसार होता है, इसके अलावा उसमें कितना संतोष है, कितनी उसके अंदर चीजो को सीखने की उत्सुकता है,वह कितना प्यासा है, कि उसे सीखना ही है, उसकी कितनी अतृप्ति है, इन सब कारण से ही किसी कला को सीखने का टाईम निर्धाारित होता है। इस कला को सीखने में एक साल,दो साल और दस साल भी लग सकते है,
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परतु मेरा एक नियम है कि मे कार्य के बीच में कभी वापस आने नही दूगा, इसलिये पूरी तरह तैयार होकर आना मेरा अपना तरीका कुछ अलग प्रकार का है, मुझसे आप यह नही कहोगे कि में इस कार्य को नही कर पाउंगा यह क्या अजीबो गरीब तरीके से मुझे सिखा रहे हो, मेरे अपने कुछ नियम है सिखाने के ….. इसके बाद सम्राट (raja) ने अपनी सहमति दे दी और जंगल में बनी संत (guru) की कुटिया में पहुच गया.
पहले दिन संत (guru) ने सम्राट (raja) से कुछ नही कहा और वे आराम से सो गये अगले दिन सुबह उठने पर साधु ने कहा कि आज से तुम्हारा पहला पाठ प्रारंभ हो रहा है, ठीक से सीखना.. और मेरा पहला सबक यह है कि में पूरे दिन में तम्हारे ऊपर लकडीनुमा तलवार से हमला करूगां चाहे उस समय तुम कुछ खा रहे हो,पढ़ रहे हो,
चाहे झाडू लगा रहे हो. में पूरे दिन किसी भी समय हमला करने के लिये तैयार रहूगा और तुमको चौकन्ना, सावधान रहना है, तुम पर कभी भी किसी भी समय हमला हो सकता है. किसी भी क्षण मेरी लकडीनुमा तलवार तुम्हे नुकसान पहुचा सकती है।
इस पर उस राजकुमार (raja) ने सोचा कि मुझे तो जागरण ( जाग्रत ) होने की शिक्षा के लिये बुलाया गया था और ये गुरू जी मुझसे यह क्या करवाना चाह रहे है, मे इनसे कोई तलवार सीखने थोडा ही आया हूं, लेकिन तभी उन्हे गुरू जी ने तो पहले ही कह दिया था कि एक बार मेरे पास आने के बाद तुम कोई पूछताछ नही करोगें.
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अब क्या करें सम्राट (raja) की मजबूरी थी. पाठ प्रारंभ हो गया, शिक्षा लेने का समय आ गया था, रोज रोजसात- आठ दिनों में ही उस राजकुमार (raja) की सारी हडिड्याा पसंलियां सब दर्द करने लगी । सब जगह चोट लग गयी, राजकुमार (raja) को अब चैन नही था, हर समय वह चौकन्ना रहता था, चाहे वह कही घूम रहा हो, किताबों को पढ रहा हो क्योकि दिन भर में उस पर 25-30 बार हमला हो ही जाता था. इसलिये वह अलर्ट रहता था ।
धीरे-धीरे आठवें दिन आते आते उसको एक नये प्रकार के होश का आभाष हुआ, उसके अंदर एक नयी जागृति पैदा हो रही थी, वह पूरे समय सावधान रहने लगा, जागरूक अवस्था में रहने लगा क्योकि हमला कभी भी हो सकता था, चाहे वह कुछ भी काम कर रहा हो उसे हर समय अंदर से एक होश रहता था कि कही से हमला ना हो जाये,
धीरे-धीरे तीन महीने होते होते वह इतना सावधान हो गया था, कि अब किसी भी तरह के आक्रमण हमला को रोकने में वह पांरगत हो गया था, उसकी ढाल तुरत ही उठ जाती थी अगर पीछे से गुरूदेव (guru) आते थें हमला करने के लिये ओर इस प्रकार वह जागरूक रहकर हमले को विफल कर देते थें ।
तीन महीने के उपरात राजकुमार (raja) को चोट देना मुश्किल हो गया था, क्योंकि वह सजग हो चुके थें, हमला कितना भी गुपचुप तरीके से हो वह अपनी रक्षा कर लेते थें, उनका चित्त सजग,जागरूक हो गया । उनके गुरूदेव (guru) ने कहा कि सम्राट (raja) आपका पहला पाठ हो गया अब हम दूसरे पाठ को कल से सीखगें।
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दुसरे पाठ के नियम यह है कि अब तक तो मैने आपके ऊपर जाग्रत अवस्था में हमला करता था, कल सुबह से जब आप नींद में हेागे तब भी में आपके ऊपर हमला करूगा, इसलिये सावधानी से सोना । इस पर सम्राट (raja) आर्श्चयचकित रह गये और कहा गुरूदेव (guru) जागने तक ही रहने देते यह तो बहुत दुश्कर हो जायेगा । होश में रहते हुऐ तो किसी तरह में अपने आपको बचा लेता था, लेकिन नींद में तो में बिल्कुल बेहोशी की हालात में रहूंगा, यह सब सुनकर गुरू बोले घबराओं नही, मुसीबत, परेशानी नीद आने पर भी होश को जागृत कर देती है।
उस संकट, परेशानी नीद मेें भी सावधानी,जागरूकता को पैैैैदा कर देती हैैै। गुरूदेव (guru) ने कहा कि तुम चिता ना करों बस तुम नींद मं भी होश में रहने की कोशिश करना ओर इसके बाद लकडीनुमा तलवार से हमला प्रारंभ हो गया रात में 8-10 बार कभी भी हमला होता था और राजकुमार (raja) के चोट लग जाती थी ।
धीरे धीरे समय गुजरने के साथ अब उसके हडड्री पसली में दर्द होने लगा लेकिन तीन महीने पूरे होते ही राजकुमार (raja) को अहसास हुआ कि ये बुडढा ठीक ही कह रहा था, कि नींद में भी होश पैदा हो जाता है में साता रहता था लेकिन अंदर कोइ ना कोई जागता रहता था और उसे ध्यान रहता था कि हमला हो सकता है ढाल पर हाथ की पकड रात को भी पूरी रहती थी,
समय तीसरे महीने के खत्म होते होते गुरूजी का प्रवेश होने , उनके कदमो की धीमी आवाज भी उसका र्अल्ट कर देती थी और वह आपनी ढाल ऊपर करके अपनी रक्षा कर लेता था ।अब तो राजकुमार (raja) पूरा चौकन्ना हो गया था और उस पर अब हमला करना मुश्किल हो गया था, अब वह बहुत खुश रहने लगा , उसे अपने शरीर में एक नई ताजगी,
Energy का अनुभव होने लगा, अब उसे नींद में होश रहने लगा और कुछ अनुभव होने लगे, शुरू के 3 महीने में जब वह दिन में जागरूक रहने की काशिश कर रहा था तो जितना वह जागरूक होता गया उसके साथ साथ उसके विचार कम होते गये। विचार भी नींद का हिस्सा होते है, आदमी जितना सोया रहता है उसके भीतर उतने ही विचार घुमते रहते है।
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आदमी जितना जागा होता है , उतना ही उसके अंदर शांति और मौन आना प्रांरभ हो जाता है, विचारो को प्रवाह रूक जाता है, शुरू के 3 महीने में उसको बिल्कुल क्लीयर हो गया था कि अब उसके विचार धीरे-धीरे कम होते जा रहे है, और उसके बाद धीरे धीरे खत्म हो गये । केवल होश और सावधानी ही रह गयी,
ये दोनो चीजें कभी भी एक साथ नहीं हो सकती है या तो विचार रहेगा या फिर केवल होश रहेगा.जैसे ही विचार आयेगा होश चला जायेगा । जिस प्रकार आकाश में यदि बादल घिर जाऐ तो सूरज ढंक जाता है, और यदि बादल हट जाये तो सूर्य भगवान के दर्शन हो जाते है, विचार भी ठीक इसी प्रकार मनुष्य के मन के बादला की तरह घेरे हुए रहते है।
जब विचार घेर लेते है तो होश गायब हो जाते है, विचार हट जाते है तो होश का आगमन होता है जैसे बादल के हटने पर सूर्य भगवान के दर्शन होना , राजकुमार (raja) को शुरू के 3 महीनो में उसको अुनभव हुआ कि उसके विचारो की शक्ति कम होती जा रही है, दूसरे और तीसरे महीने में उसको एक बड़ा गजब हुआ !
अब उसको लगने लगा कि जैसे जैसे उसका होश बढता जा रहा ठीक उसी तरह मेंरे सपने भी कम होते जा रहे है,तीसरे महीने के पूरे होते होते उसका जागरण रात में भी बने रहने लगा, तो उसके सपने बिल्कुल गायब हो गये, उसकी नींद अब स्वप्नरहित हो गयी, जब दिन के विचार और रात के सपने शून्य हो जाते है, तो मनुष्य की चेतना जाग जाती है.
तीन महीने के समाप्त होने पर उस बूढे सन्यांसी ने राजकुमार (raja) से कहा कि अब तुम्हारा दूसरा पाठ भी हो गया, अब उस राजकुमार (raja) ने कहा कि अब तीसरा पाठ क्या होगा, जागने का और नींद का दोनो का पाठ पूरा हो गया अब क्या,,,, इस पर उसके गुरु ने कहा कि असली पाठ अब प्रांरभ होगा,
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अब कल से में तुम्होरे ऊपर असली तलवार से आक्रमण करूगां, अब तक तो केवल लकड़ी क तलवार थी, वह राजकुमार (raja) आश्चर्यचकित हो गया ये आप क्या कह रहे है गुरूवर. लकडी की तलवार तो कोई बात नहीं थी, अगर लगती थी तो केवल हल्की चोट आती थी, लेकिन असली तलवार इसमें तो बहुत खतरा है।
guru ki gyan ki baateinइस पर उस बूढे गुरु ने कहा कि जितनी अधिक चुनौती चेतना के लिये खडी की जाए चेतना उतनी ही जागती है, उतनी ही सजग होती है। तुम बिल्कुल भी परेशान, चितंति मत हो । यह उसली तलवार तुम्हे और गहराईयों तक जाग्रत कर देगी । और इसके बाद अगले दिन सुबह सुबह असली तलवार से हमला प्रांरभ हो गया । आप सोच सकते है कि असली तलवार के स्मरण मात्र ने ही उसकी सारी चेतना की निद्रां को खत्म कर दिया होगा,
उसके अंदर तक, प्राणो की गहराई सिर्फ असली तलवार का ही ख्याल स्थापित हो गया था.उनका यह पाठ तीन महीने तक चला और इन तीन महीने गुरु जी एक बार भी राजकुमार (raja) का असली तलवार से चोट नहीं पहुचा सके । लकडीनुमा तलवार की अपेक्षा असली तलवार की चुनौती अधिक थी,
तीन महीने गुरु एक भी चोट नहीं पहुंचा सिर्फ एक बार की भूल और जिदंगी का अंत . सम्राट (raja) को इन 3 महीने में इतनी आनद,खुशी,शांति, इतने प्रकाश का अनुभूति हुई कि कि उसका जीवन एक नयी दुनिया में प्रवेश करने लग ।
अब राजकुमार (raja) का आखिरी दिन आ गय और सन्ंयासी ने कहा कि कल तुमको विदा कर दिया जायेगा आप उत्तीर्ण हो गये हो, क्या तुम जाग्रत (जाग) नहीं गये हो तदुपरांत राजकुमार (raja) ने गुरूदेव (guru) के चरणो में सिर रख दिया, राजुकुमार ने कहा गुरूदेव (guru) में जाग गयाहूं और यह भी जान चुका हूं कि में कितना सोया हुआ था।
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जो आदमी जीवन भर बीमार रहा हो, वह धीरे-धीरे भूल ही जाता है कि मैं बीमार हूं। जब वह स्वस्थ होता है तभी पता चलता है कि मैं कितना बीमार था। जो आदमी जीवन भर सोया रहा है और हम सब सोए रहे हैं; हमे पता भी नहीं चलता कि ओह! बदतर अंधकार था, वह प्रकाश था ही नहीं। जब मैं सोया हुआ था जिसे मैंने जीवन समझना था, वह तो मृत्यु थी, जीवन तो यह है।
उस राजकुमार (raja) ने चरणों में सिर रख दिया और कहा कि अब मैं जान रहा हूं कि जीवन क्या है। कल क्या मेरी शिक्षा पूरी हो जाएगी ? गुरु ने कहा, कल सुबह मैं तुम्हें विदा कर दूंगा। सांझ की बात है, एक वृक्ष के नीचे गुरू बैठ कर किताब पढ़ रहा है और कोई तीन सौ फीट दूर वह युवक बैठा हुआ है। कल सुबह वह विदा हो जाएगा। इस छोटी सी कुटी में, इस बूढ़े के पास, उसने जीवन की संपदा पा ली है।
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- आपकी क़ीमत
शांयकाल की बात है गुरूजी एक पेड़ के नीचे बैठे हुये किताब पढ रहे थें, और उनसे कुछ दूरी पर राजकुमार (raja) बैठा हुआ था, वह सोच रहा था कि कल सुबह उसकी यहाँ से विदाई हो जायेगी, इस छोटी सी कुटिया में, इस बूढे गुरु ने उसे जीवन की संपदा दे दी, तभी अचानके उसके मन में ख्याल आया कि यह बुडढा नौ महीने से मेरे पीछे लगा था,
पूरे नौ महीने तक जागना-जागना, जागरूकता, होश, सावधान-सावधान कहकर मेरे पीछे पडा रहता था, में भी तो देखू की यह बुडढा गुरु भी जागरूक,सावधान है या नही, आज क्यों ना यहाँ से उठकर इस आक्रमण करके देखू कि यह कितना सावधान, जागा हुआ है कि नहीं, वैसे भी कल तो मुझे यहाँ से चल जाना है, में अभी यह तलवार उठाता हूं और इस बूढे पर हमला करता हूं, पता चल जायेगा कितना सावधान है,
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अभी उसने ये सभी बाते अपने मन में सोची ही थी कितभी उसे झटका लगा दूर से उस बूढे संन्यासी ने चिल्लाकर कहा नहीं ऐसा बिल्कुल मत करना, में बहुत बूढा व्यक्ति हूं, गलती से भी ऐसा मत कर देना, वह युवक आश्चर्यचकित रह गया उसने तो सिर्फ सोचा ही था, उसने कहा कि मेने तो कुछ करा ही नहीं, सिर्फ सोचा ही था,
इस पर उस बूढे गुरु ने कहा कि अभी तू थोडे दिन और यहाँ रूक जा , जब हमारा मन बिल्कुल शात हो जाता है तो दूसरे के विचारो की पग ध्वनि भी हमारे कानो में सुनाई देने लगती है,वही जब मन पूरी तरह से शांत हो जाता है तो दूसरे के मन में चलने वाली बातें विचारो के भी दर्शन हो जाते है, जब कोई बहुत बिल्कुल शांत हो जाता है तो सोर संसार में, सारे जीवने में चलते हुऐ स्पंदन भी उसको महसूस होने लगते है।
अब अगले दिन राजकुमार (raja) ने अपने गुरु की आज्ञा लेकर राजमहल की तरफ प्रस्थान कर दिया, एक अनुभव के साथ वह कुटिया से वापस लौटा । विपस्सना में भी इसी तरह की प्रज्ञा जाग जाती है।
इतनी ही शांति में स्वंय चेतना का अनुभव अवतरित होता है। वह राजकुमार (raja) दूसरे दिन विदा हो गया होगा। एक अनूठा अनुभव लेकर वह उस आश्रम से वापस लौटा! अत: विपस्सना सें भी इसी तरह सें प्रज्ञा जाग जाती हैं।
In opanion:
दोस्तो हमें पूरी उम्मीद हैं, कि आपको खुशी का रास्ता गुरू के द्धारा । hindi adhyatmik kahaniya । guru ki gyan ki baatein की कहानी पंसद आयी होगी, कृप्या आपने कमेट और सुझावों से हमारा मार्गदर्शन करते रहे । तो दोस्तो मिलते है अगली बार तब तक के लिये Stay Happy, नमस्कार ।
धन्यवाद
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