गुरू शि‍ष्‍य और चावल की कहानी- guru Shishya Story in Hindi best

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Sanyasi Guru Aur Chawal ke Kahani
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गुरू शि‍ष्‍य और चावल की कहानी

Guru Shishya story in hindi:दोस्तों समय-समय पर संसार के अलग-अलग देशों में बहुत से प्रसिद्ध फकीर,संन्यासी, साधु या महात्मा हुऐ है। ज‍िन्होने अपनी श‍िक्षाओं,प्रवचन द्धारा आमजन को  काफी अधि‍क फायदा पहुंचाया है.guru ki mahima story in hindi इसी संदर्भ में आज हम बात कर रहें चीन के एक बहुत प्रसद्धि फकीर के बारे में, जि‍न्होने आम आदमी को ज‍िंदगी में सफल होने का मंत्र बताया, तो आइऐ शुरू करते है चीनी संन्यासी गुरू और चावल की कहानी…………   

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guru Shishya Story in Hindi
                                           Guru Shishya Story in Hindi
चीन में एक बहुत बड़ा फकीर हुआ। वह अपने Guru के पास गया तो गुरु ने उससे पूछा कि तू सच में संन्यासी हो जाना चाहता है कि संन्यासी Sanyasi  दिखना चाहता है? उसने कहा कि जब संन्यासी Sanyasi ही होने आया तो दिखने का क्या करूंगा? होना चाहता हूं। तो गुरु ने कहा, फिर ऐसा कर, यह अपनी आखिरी मुलाकात हुई। पाँच सौ संन्यासी हैं इस आश्रम में तू उनका चावल Rice कूटने का काम कर। अब दुबारा यहां मत आना। जरूरत जब होगी, मैं आ जाऊंगा।

गुरू शि‍ष्‍य और चावल की Best कहानी-guru ki mahima story in hindi

कहते है, बारह साल बीत गए। वह संन्यासी Sanyasi चौके के पीछे, अंधेरे गृह में चावल कूटता रहा। पांच सौ संन्यासी थे। सुबह से उठता, चावल कूटता रहता। सुबह से उठता, चावल कूटता रहता। रात थक जाता, सो जाता। बारह साल बीत गए। वह कभी Guru के पास दुबारा नहीं गया। क्योंकि जब गुरु ने कह दिया, तो बात खतम हो गयी। जब जरूरत होगी वे आ जाएंगे, भरोसा कर लिया।

गुरू और शि‍ष्‍य  की कहानी – Guru Shishya Story in Hindi

कुछ दिनों तक तो पुराने खयाल चलते रहे, लेकिन अब चावल ही कूटना हो दिनरात तो पुराने ख्यालाे   चलाने से फायदा भी क्या? धीरे—धीरे पुराने खयाल विदा हो गए। उनकी पुनरुक्ति में कोई अर्थ न रहा। खाली हो गए, जीर्ण—शीर्ण हो गए। बारह साल बीतते—बीतते तो उसके सारे विदा ही हो गए विचार। चावल ही कूटता रहता। शांत रात सो जाता, सुबह उठ आता, चावल Rice कूटता रहता। न कोई अड़चन, न कोई उलझन। सीधा—सादा काम, विश्राम।           
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Guru Shishya Story in Hindi
बारह साल बीतने पर गुरु ने घोषणा की कि मेरे जाने का वक्त आ गया और जो व्यक्ति भी उत्तराधिकारी होना चाहता हो मेरा, रात मेरे दरवाजे पर चार पंक्तियां लिख जाए जिनसे उसके सत्य का अनुभव हो। लोग बहुत डरे, क्योंकि गुरु को धोखा देना आसान न था। शास्त्र तो बहुतों ने पढ़े थे।
फिर जो सब से बडा पंडित था, वही रात लिख गया आकर। उसने लिखा कि मन एक दर्पण की तरह है, जिस पर धूल जम जाती है। धूल को साफ कर दो, धर्म उपलब्ध हो जाता है। धूल को साफ कर दो, सत्य अनुभव में आ जाता है। सुबह Guru उठा, उसने कहा, यह किस नासमझ ने मेरी दीवाल खराब की? उसे पकड़ो।

गुरू शि‍ष्‍य और चावल की Best कहानी-guru ki mahima story in hindi

वह पंडित तो रात ही भाग गया था, क्योंकि वह भी खुद डरा था कि धोखा दें! यह बात तो बढ़िया कही थी उसने, पर शास्त्र से निकाली थी। यह कुछ अपनी न थी। यह कोई अपना अनुभव न था। अस्तित्वगत न था। प्राणों में इसकी कोई गंज न थी। वह रात ही भाग गया था कि कहीं अगर सुबह गुरु ने कहा, ठीक!

तो मित्रों को कह गया था, खबर कर देना अगर Guru कहे कि पकड़ो, तो मेरी खबर मत देना। सारा आश्रम चिंतित हुआ। इतने सुंदर वचन थे। वचनों में क्या कमी है? मन दर्पण की तरह है, शब्दों की, विचारों की, अनुभवों की धूल जम जाती है।
बस इतनी ही तो बात है। साफ कर दो दर्पण, सत्य का प्रतिबिंब फिर बन जाता है। लोगों ने कहा, यह तो बात बिलकुल ठीक है,

गुरू और शि‍ष्‍य  की कहानी – Guru Shishya Story in Hindi

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Guru Shishya Story in Hindi
गुरु जरा जरूरत से ज्यादा कठोर है। पर अब देखें, इससे ऊंची बात कहां से Guru ले आएंगे। ऐसी बात चलती थी, चार संन्यासी बात करते उस चावल Rice कूटने वाले आदमी के पास से निकले। वह भी सुनने लगा उनकी बात। सारा आश्रम गर्म! इसी एक बात से गर्म था।सुनी उनकी बात, वह हंसने लगा। उनमें से एक ने कहा, तुम हंसते हो! बात

 

 गुरू और शि‍ष्‍य  की कहानी – Guru Shishya Story in Hindi

क्या है? उसने कहा, Guru ठीक ही कहते हैं। यह किस नासमझ ने लिखा? वे चारों चौंके। उन्होंने कहा, तू बारह साल से चावल ही कूटता रहा, तू भी इतनी हो गया! हम शास्त्रों से सिर ठोंक—ठोंककर मर गए। तो तू लिख सकता है इससे बेहतर कोई वचन? उसने कहा, लिखना तो मैं भूल गया, बोल सकता हूं अगर कोई लिख दे जाकर। लेकिन एक बात खयाल रहे, उत्तराधिकारी होने की मेरी कोई आकांक्षा नहीं। यह शर्त बता देना कि वचन तो मै बोल देता हूं,…..
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अगर कोई लिख भी दे जाकर—मैं तो लिखूंगा नहीं, क्योंकि मैं भूल गया, बारह साल हो गए कुछ लिखा नहीं उत्तराधिकारी मुझे होना नहीं है। अगर इस लिखने की वजह से उत्तराधिकारी होना पड़े, तो मैंने कान पकड़े, मुझे लिखवाना भी नहीं।

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पर उन्होंने कहा, बोल! हम लिख देते है जाकर। उसने लिखवाया कि लिख दो जाकर कैसा दर्पण? कैसी धूल? न कोई दर्पण है, न कोई धूल है, जो इसे जान लेता है, धर्म को उपलब्ध हो जाता है।
आधी रात Guru उसके पास आया और उसने कहा कि अब तू यहां से भाग जा। अन्यथा ये पांच सौ Sanyasi तुझे मार डालेंगे। यह मेरा चोगा ले, तू मेरा उत्तराधिकारी बनना चाहे या न बनना चाहे, इससे कोई सवाल नही, तू मेरा उत्तराधिकारी है। मगर अब तू यहां से भाग जा। अन्यथा ये बर्दाश्त न करेंगे कि चावल Rice कूटने वाला और सत्य को उपलब्ध हो गया, और ये सिर कूट—कूटकर मर गए।
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जीवन में कुछ होने की चेष्टा तुम्हें और भी दुर्घटना में ले जाएगी। तुम चावल ही कूटते रहना, कोई हर्जा नहीं है। कोई भी सरल सी क्रिया, काफी है। असली सवाल भीतर जाने का है। अपने जीवन को ऐसा जमा लो कि बाहर ज्यादा उलझाव न रहे। थोड़ा—बहुत काम है जरूरी है, कर दिया, फिर भीतर सरक गए।

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भीतर सरकना तुम्हारे लिए ज्यादा से ज्यादा रस भरा हो जाए। बस, जल्दी ही तुम पाओगे दुर्घटना समाप्त हो गयी, अपने को पहचानना शुरू हो गया। अपने से मुलाकात होने लगी। अपने आमने—सामने पड़ने लगे। अपनी झलक मिलने लगी। कमल खिलने लगेंगे। बीज अंकुरित होगा।



Opanion: दोस्तो यह लेख आपको कैसे लगे यदि यह लेख (guru Shishya Story in Hindi best)कहानी आपको कैसी लगी आपने इस guru ki mahima story in hindi से क्‍या शि‍क्षा प्राप्‍त की. आपके सुझावों का स्‍वागत है.

warms & regards 

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Yes Alka ji it is true that when we obey our eleders or teachers,we got success in our life. welcome you on Positivebate.com

Alka priydarshni
4 years ago

Bhut he sunder aur inspirational story. It prove that everybody fullfill obey their teacher for achieving solething.